आपदुन्मूलन दुर्गा स्तोत्रम् हिंदी (Apadunmoolana Durga Stotram) माँ दुर्गा को समर्पित किया गया है। इसका पाठ नियमित रूप से करने से व्यक्ति के जीवन के सारे दुःख, पीड़ा व दर्द समाप्त हो जाते हैं और जिन जातकों के विवाहित जीवन में हो रही कठिनाईयों भी समाप्त हो जाती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि, और खुशहाली का आगमन होने लगता है। इस पाठ को रोज करने से व्यापार और नौकरी में दिनों-दिन सफलता मिलने लगती है।

Apadunmoolana Durga Stotram:आपदुद्धारक दुर्गा स्तोत्रम् (आपदुन्मूलन स्तोत्र) माता दुर्गा को समर्पित एक पवित्र स्तोत्र है, जो विशेष रूप से संकटों और बाधाओं को दूर करने के लिए पढ़ा जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में शांति, सुरक्षा, और देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।

Apadunmoolana Durga Stotram:आपदुन्मूलन दुर्गा स्तोत्रम् का महत्व

  • यह स्तोत्र दुर्गा सप्तशती से लिया गया है और संकटमोचन स्तोत्रों में से एक है।
  • यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो मानसिक तनाव, वित्तीय समस्याओं, या शत्रुओं के कारण परेशान हैं।

Apadunmoolana Durga Stotram vidhi:आपदुन्मूलन स्तोत्रम् का पाठ विधि

कब करना चाहिए?

  • नवरात्रि, अष्टमी, नवमी, या किसी भी शुक्रवार को इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
  • संकट के समय इसे कभी भी पढ़ा जा सकता है।

कैसे करें?

  1. स्नान और शुद्धिकरण:
    • स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
  2. पूजन सामग्री:
    • मां दुर्गा की प्रतिमा/चित्र के सामने दीप जलाएं।
    • पुष्प, धूप, चंदन, और नैवेद्य अर्पित करें।
  3. संकल्प और ध्यान:
    • पाठ शुरू करने से पहले देवी दुर्गा का ध्यान करें और संकट से मुक्ति का संकल्प लें।
  4. स्तोत्र पाठ:
    • पूरे मनोभाव से “आपदुन्मूलन दुर्गा स्तोत्रम्” का पाठ करें।
  5. अंत में:
    • देवी दुर्गा से प्रार्थना करें कि वे आपके जीवन से सभी संकटों का नाश करें।

लक्ष्मीशे योगनिद्रां प्रभजति भुजगाधीशतल्पे सदर्पा- वुत्पन्नौ दानवौ तच्छ्रवणमलमयाङ्गौ मधुं कैटभं च ।
दृष्ट्वा भीतस्य धातुः स्तुतिभिरभिनुतां आशु तौ नाशयन्तीं, दुर्गां देवीं प्रपद्ये शरणमहमशेषापदुन्मूलनाय ॥ १ ॥

युद्धे निर्जित्य दैत्यस्त्रिभुवनमखिलं यस्तदीय धिष्ण्ये- ष्वास्थाप्य स्वान् विधेयान् स्वयमगमदसौ शक्रतां विक्रमेण ।
तं सामात्याप्तमित्रं महिषमभिनिहत्यास्यमूर्धाधिरूढां, दुर्गां देवीं प्रपद्ये शरणमहमशेषापदुन्मूलनाय ॥ २ ॥

विश्वोत्पत्तिप्रणाशस्थितिविहृतिपरे देवि घोरामरारि- त्रासात् त्रातुं कुलं नः पुनरपि च महासङ्कटेष्वीदृशेषु ।
आविर्भूयाः पुरस्तादिति चरणनमत् सर्वगीर्वाणवर्गां, दुर्गां देवीं प्रपद्ये शरणमहमशेषापदुन्मूलनाय ॥ ३ ॥

हन्तुं शुंभं निशुंभं विबुधगणनुतां हेमडोलां हिमाद्रा- वारूढां व्यूढदर्पान् युधि निहतवतीं धूम्रदृक् चण्डमुण्डान् ।
चामुण्डाख्यां दधानां उपशमितमहारक्तबीजोपसर्गां, दुर्गां देवीं प्रपद्ये शरणमहमशेषापदुन्मूलनाय ॥ ४ ॥

ब्रह्मेशस्कन्दनारायणकिटिनरसिंहेन्द्रशक्तीः स्वभृत्याः, कृत्वा हत्वा निशुंभं जितविबुधगणं त्रासिताशेषलोकम् ।
एकीभूयाथ शुंभं रणशिरसि निहत्यास्थितां आत्तखड्गां, दुर्गां देवीं प्रपद्ये शरणमहमशेषापदुन्मूलनाय ॥ ५ ॥

उत्पन्ना नन्दजेति स्वयमवनितले शुंभमन्यं निशुंभम्, भ्रामर्याख्यारुणाख्या पुनरपि जननी दुर्गमाख्यं निहन्तुम् ।
भीमा शाकंभरीति त्रुटितरिपुभटां रक्तदन्तेति जातां, दुर्गां देवीं प्रपद्ये शरणमहमशेषापदुन्मूलनाय ॥ ६ ॥

त्रैगुण्यानां गुणानां अनुसरणकलाकेलि नानावतारैः, त्रैलोक्यत्राणशीलां दनुजकुलवनीवह्निलीलां सलीलाम् ।
देवीं सच्चिन्मयीं तां वितरितविनमत्सत्रिवर्गापवर्गां, दुर्गां देवीं प्रपद्ये शरणमहमशेषापदुन्मूलनाय ॥ ७ ॥

सिंहारूढां त्रिनेत्रां करतलविलसत् शंखचक्रासिरम्यां, भक्ताभीष्टप्रदात्रीं रिपुमथनकरीं सर्वलोकैकवन्द्याम् ।
सर्वालङ्कारयुक्तां शशियुतमकुटां श्यामलाङ्गीं कृशाङ्गीं, दुर्गां देवीं प्रपद्ये शरणमहमशेषापदुन्मूलनाय ॥ ८ ॥

त्रायस्वस्वामिनीति त्रिभुवनजननि प्रार्थना त्वय्यपार्था, पाल्यन्तेऽभ्यर्थनायां भगवति शिशवः किन्न्वनन्याः जनन्या ।
तत्तुभ्यं स्यान्नमस्येत्यवनतविबुधाह्लादिवीक्षाविसर्गां, दुर्गां देवीं प्रपद्ये शरणमहमशेषापदुन्मूलनाय ॥ ९ ॥

एतं सन्तः पठन्तु स्तवमखिलविपज्जालतूलानलाभं, हृन्मोहध्वान्तभानुप्रतिममखिलसङ्कल्पकल्पद्रुकल्पम् ।
दौर्गं दौर्गत्यघोरातपतुहिनकरप्रख्यमंहोगजेन्द्र- श्रेणीपञ्चास्यदेश्यं विपुलभयदकालाहितार्क्ष्यप्रभावम्  ॥ १० ॥

Apadunmoolana Durga Stotram

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