सावित्री के पतिव्रता धर्म की कथा का सार :- यह है कि एकनिष्ठ पतिपरायणा स्त्रियां अपने पति को सभी दुख और कष्टों से दूर रखने में समर्थ होती है। जिस प्रकार पतिव्रता धर्म के बल से ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन से छुड़ा लिया था। इतना ही नहीं खोया हुआ राज्य तथा अंधे सास-ससुर की नेत्र ज्योति भी वापस दिला दी।
STORY OF SATYAWAN AND SAVITRI
सावित्री देवी ने कहा – ” राजन ! तुम मेरे नित्य भक्त हो, अतः मैं तुम्हें कन्या प्रदान करूँगी। मेरी कृपा से तुम्हें सर्वांग सुंदरी कन्या प्राप्त होगी। “
यह कहकर वह देवी आकाश में बिजली की भाँति अदृश्य हो गयी। उस राजा की मालती नाम की पतिव्रता पत्नी थी। समय आने पर उसने सावित्री के समान रूपवाली एक कन्या को जन्म दिया।
तब राजा ने ब्राह्मणों से कहा – ” तप के द्वारा आवाहन किये जाने पर माता सावित्री ने इसे मुझे दिया है तथा यह सावित्री के समान रूपवाली है, अतः इसका नाम सावित्री होगा। “
तब उन ब्राह्मणों ने उस कन्या का नाम सावित्री रख दिया। समय बीतने पर जब सावित्री युवती हुई तब सावित्री को वर खोजने के लिये कहा गया तो उसने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पतिरूप में वरण कर लिया।
इधर यह बात जब नारदजी को मालूम हुई तो वे राजा अश्वपति के पास आकर बोले कि आपकी कन्या ने वर खोजने में बड़ी भारी भूल की है। सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा अवश्य है, परंतु वह अल्पायु है। एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जायेगी।
राजकुमारी सावित्री को सत्यवान नाम के एक निर्धन युवक से प्रेम हो गया। नारद मुनि ने उसे समझाया कि वह सत्यवान से विवाह ना करें क्योंकि उसकी मौत जल्दी होना तय है। सावित्री ने नारद की बात नहीं मानी और सत्यवान से विवाह कर लिया।
जल्द ही सत्यवान की मृत्यु का दिन आ गया। यमराज स्वयं उसे लेने आए। सावित्री ने उनसे सत्यवान के प्राण ना लेने की विनती की लेकिन यम ने कहा की मृत्यु को कोई नहीं रोक सकता।
सावित्री उनके पीछे मिलो मिल चलती गई। उसकी लगन देखकर यम बहुत प्रभावित हुए और बोले, “मैं तुम्हें दो वरदान देता हूं; तुम सत्यवान के प्राणों को छोड़कर कुछ भी मांग लो।”
सावित्री ने पहले वरदान में अपने ससुर की कुशलता की मांग की। और दूसरे वरदान में उसने चतुराई दिखाते हुए अपने लिए सौ पुत्रों की मांग कर दी। यम ने बिना सोचे समझे हां कर दी। क्योंकि बिना पति के वह पुत्र कैसे पा सकेगी। यम निरुत्तर हो गए और उन्होंने सावित्री के पति सत्यवान के प्राण लौटा दिए।
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