कबीर पुत्र कमाल की एक कथा हैं। एक बार राम नाम के प्रभाव से कमाल द्वारा एक कोढ़ी का कोढ़ दूर हो गया। कमाल समझने लगे कि रामनाम की महिमा मैं जान गया हूँ। कमाल के इस कार्य से किंतु कबीर जी प्रसन्न नहीं हुए। कबीरजी ने कमाल को तुलसीदास जी के पास भेजा।तुलसीदासजी ने तुलसी के पत्र पर रामनाम लिखकर वह तुलसी पत्र जल में डाला और उस जल से 500 कोढ़ियों को ठीक कर दिया।
कमाल समझने लगा कि तुलसीपत्र पर एक बार रामनाम लिखकर उसके जल से 500 कोढ़ियों को ठीक किया जा सकता है, रामनाम की इतनी महिमा हैं। किंतु कबीर जी इससे भी संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने कमाल को भेजा संत सूरदास जी के पास।
संत सूरदास जी ने गंगा में बहते हुए एक शव के कान में राम शब्द का केवल र कार कहा और शव जीवित हो गया। तब कमाल ने सोचा कि राम शब्द के र कार से मुर्दा जीवित हो सकता हैं। यह राम शब्द की महिमा हैं।
तब कबीर जी ने कहाः यह भी नहीं। इतनी सी महिमा नहीं है राम शब्द की।
भृकुटि विलास सृष्टि लय होई।
जिसके भृकुटि विलास मात्र से प्रलय हो सकता है, उसके नाम की महिमा का वर्णन तुम क्या कर सकोगे?
राम नाम महिमा में एक अन्य कथा:
समुद्रतट पर एक व्यक्ति चिंतातुर बैठा था, इतने में उधर से विभीषण निकले। उन्होंने उस चिंतातुर व्यक्ति से पूछाः क्यों भाई! तुम किस बात की चिंता में पड़े हो?
मुझे समुद्र के उस पार जाना हैं परंतु मेरें पास समुद्र पार करने का कोई साधन नहीं हैं। अब क्या करूँ मुझे इस बात की चिंता हैं। अरे भाई, इसमें इतने अधिक उदास क्यों होते हो?
ऐसा कहकर विभीषण ने एक पत्ते पर एक नाम लिखा तथा उसकी धोती के पल्लू से बाँधते हुए कहाः इसमें मेनें तारक मंत्र बाँधा हैं। तू इश्वर पर श्रद्धा रखकर तनिक भी घबराये बिना पानी पर चलते आना। अवश्य पार लग जायेगा।
विभीषण के वचनों पर विश्वास रखकर वह व्यक्ति समुद्र की ओर आगे बढ़ने लगा। वहं व्यक्ति सागर के सीने पर नाचता-नाचता पानी पर चलने लगा। वह व्यक्ति जब समुद्र के बीचमें आया तब उसके मन में संदेह हुआ कि विभीषण ने ऐसा कौन सा तारक मंत्र लिखकर मेरे पल्लू से बाँधा हैं कि मैं समुद्र पर सरलता से चल सकता हूँ। इस मुझे जरा देखना चाहिए।
उस व्यक्ति ने अपने पल्लू में बँधा हुआ पत्ता खोला और पढ़ा तो उस पर दो अक्षर में केवल राम नाम लिखा हुआ था। राम नाम पढ़ते ही उसकी श्रद्धा तुरंत ही अश्रद्धा में बदल गयीः अरे ! यह कोई तारक मंत्र हैं ! यह तो सबसे सीधा सादा राम नाम हैं ! मन में इस प्रकार की अश्रद्धा उपजते ही वह व्यक्ति डूब कर मरगया।
कथा सार: इस लिये विद्वानो ने कहां हैं श्रद्धा और विश्वास के मार्ग में संदेह नहीं करना चाहिए क्योकि अविश्वास एवं अश्रद्धा ऐसी विकट परिस्थितियाँ निर्मित हो जाती हैं कि मंत्र जप से काफी ऊँचाई तक पहुँचा हुआ साधक भी विवेक के अभाव में संदेहरूपी षड्यंत्र का शिकार होकर अपना अति सरलता से पतन कर बैठता हैं। इस लिये साधारण मनुष्य को तो संदेह की आँच ही गिराने के लिए पर्याप्त हैं। हजारों-लाखों-करोडों मंत्रो की साधना जन्मों-जन्म की साधना अपने सदगुरु पर संदेह करने मात्र से नष्ट हो जाती है।
तुलसीदास जी कहते हैं-
राम ब्रह्म परमारथ रूपा।
अर्थात्: ब्रह्म ने ही परमार्थ के लिए राम रूप धारण किया था।
रामनाम की औषधि खरी नियत से खाय।
अंगरोग व्यापे नहीं महारोग मिट जाय ।।