Panch Parmeshthi Aarti:पंच परमेष्ठी आरती जैन धर्म की एक महत्वपूर्ण आरती है, जो पाँच परम पूज्य व्यक्तित्वों को समर्पित है। यह आरती धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा और विशेष अवसरों पर की जाती है। पंच परमेष्ठी में निम्नलिखित पूज्य शामिल होते हैं:
- अरिहंत
- सिद्ध
- आचार्य
- उपाध्याय
- साधु (साध्वी)
Panch Parmeshthi Aarti:पंच परमेष्ठी आरती के लाभ
1. आध्यात्मिक उन्नति
- Panch Parmeshthi Aarti:पंच परमेष्ठी की आरती से आत्मा की शुद्धि होती है। यह आरती व्यक्ति को मोक्ष मार्ग पर प्रेरित करती है और उसकी आध्यात्मिक यात्रा को तेज करती है।
2. धर्म में रुचि और समर्पण
- Panch Parmeshthi Aarti:आरती के माध्यम से पंच परमेष्ठी के प्रति भक्ति और श्रद्धा बढ़ती है। यह व्यक्ति को धर्म के प्रति जागरूक बनाती है।
3. मन की शांति और स्थिरता
- आरती के समय जो मंत्र और भजन गाए जाते हैं, वे मन को शांत करते हैं। इससे मानसिक तनाव और बेचैनी दूर होती है।
4. सकारात्मक ऊर्जा का संचार
- पंच परमेष्ठी आरती करने से घर और पूजा स्थल में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। Panch Parmeshthi Aarti यह ऊर्जा नकारात्मक विचारों और प्रभावों को दूर करने में सहायक होती है।
5. पुण्य और धर्म लाभ
- आरती करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्यक्ति के जीवन में शुभ फल और सुखद अनुभव लाने में सहायक होती है।
6. सही मार्गदर्शन
- पंच परमेष्ठी आरती करने से व्यक्ति को सही मार्गदर्शन प्राप्त होता है। यह जीवन में नैतिकता और सादगी का पालन करने की प्रेरणा देती है।
7. संपूर्ण समाज के कल्याण की भावना
- पंच परमेष्ठी जैन समाज के आदर्श स्तंभ हैं। उनकी आरती करने से व्यक्ति में समाज और विश्व कल्याण की भावना प्रबल होती है।
पंच परमेष्ठी आरती (शब्द)
“जय जय अरिहंत, जय जय अरिहंत।
जय जय सिद्ध, जय जय सिद्ध।
जय जय आचार्य, जय जय आचार्य।
जय जय उपाध्याय, जय जय उपाध्याय।
जय जय साधु, जय जय साधु।“
यह आरती जैन धर्म के पंच परमेष्ठी की महिमा और उनके द्वारा बताए गए मोक्ष मार्ग को अपनाने की प्रेरणा देती है। नियमित रूप से इसे करने से व्यक्ति के जीवन में धार्मिक, मानसिक, और आध्यात्मिक संतुलन बना रहता है।
Panch Parmeshthi Aarti:पंच परमेष्ठी आरती
इह विधि मंगल आरति कीजे,
पंच परमपद भज सुख लीजे ।
इह विधि मंगल आरति कीजे,
पंच परमपद भज सुख लीजे ॥
पहली आरति श्रीजिनराजा,
भव दधि पार उतार जिहाजा ।
इह विधि मंगल आरति कीजे,
पंच परमपद भज सुख लीजे ॥
दूसरी आरति सिद्धन केरी,
सुमिरन करत मिटे भव फेरी ।
इह विधि मंगल आरति कीजे,
पंच परमपद भज सुख लीजे ॥
तीजी आरति सूरि मुनिंदा,
जनम मरन दु:ख दूर करिंदा ।
इह विधि मंगल आरति कीजे,
पंच परमपद भज सुख लीजे ॥
चौथी आरति श्री उवझाया,
दर्शन देखत पाप पलाया ।
इह विधि मंगल आरति कीजे,
पंच परमपद भज सुख लीजे ॥
पाँचमि आरति साधु तिहारी,
कुमति विनाशन शिव अधिकारी ।
इह विधि मंगल आरति कीजे,
पंच परमपद भज सुख लीजे ॥
छट्ठी ग्यारह प्रतिमाधारी,
श्रावक वंदूं आनंदकारी ।
इह विधि मंगल आरति कीजे,
पंच परमपद भज सुख लीजे ॥
सातमि आरति श्रीजिनवानी,
‘द्यानत’ सुरग मुकति सुखदानी ।
इह विधि मंगल आरति कीजे,
पंच परमपद भज सुख लीजे ॥