इस बार भी राजा विक्रमादित्य ने बड़े से पेड़ पर लटके बेताल को उतारा और उसे लेकर आगे बढ़ने लगे। खुद को बचाने के लिए बेताल ने फिर से राजा को एक कहानी सुनाई। बेताल कहता है…
एक बार की बात है, कनकपुर नाम का एक शहर था, जिसके राजा का नाम यशोधन था। वो राजा अपनी प्रजा का खूब ख्याल रखता था। उसी शहर में एक सेठ भी था, जिसकी बेटी का नाम उन्मादिनी था। वो बहुत ही सुंदर और गुणी थी, उसे जो भी देखता वो उसे देखता ही रह जाता था।
जब सेठ की बेटी बड़ी हुई तो सेठ ने उसके शादी का निर्णय लिया। सेठ सबसे पहले राजा के पास अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव लेकर गया। सेठ ने राजा के पास जाकर कहा कि, “महाराज मैं अपनी बेटी की शादी के बारे में सोच रहा हूं। वो बहुत ही सुंदर, गुणी और विद्वान है। आप यहां के महाराज हैं, सबसे ज्यादा साहसी, गुणी और विद्वान आपसे अच्छा मेरी बेटी के लिए कोई नहीं हो सकता है। ऐसे में सबसे पहले मैं आपको निवेदन करना चाहता था, आप मेरी बेटी को पत्नी के रूप में अपनाएं और अगर आपको मंजूर नहीं तो आप अस्वीकार कर दें।”
सेठ की बता सुनकर राजा उनकी बेटी को देखने और उनके लक्षणों को परखने के लिए ब्राह्मणों को भेजा। राजा की बात मानकर ब्राह्मण वहां उन्मादिनी को देखने गए। ब्राह्मण उन्मादिनी को देखकर काफी खुश हुए, लेकिन दूसरे ही पल उन्हें इस बात की चिंता भी हुई कि अगर राजा ने इतनी खूबसूरत लड़की से शादी की तो वो पूरा दिन उन्हें देखते ही रहेंगे और प्रजा पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। इसलिए, ब्राह्मणों ने फैसला किया कि वो राजा को उन्मादिनी के रूप और गुणों के बारे में कुछ नहीं बताएंगे। सारे ब्राह्मण राजा के पास पहुंचे और बोले कि, “राजा वो लड़की अच्छी नहीं है, इसलिए आप उनसे शादी न करें।” ब्राह्मणों की बात सुनकर राजा को लगा कि वो लोग सच बोल रहे हैं। राजा ने उन्मादिनी से शादी करने के लिए मना कर दिया। फिर सेठ ने राजा की अनुमति से राजा के सेनापति बलधर के साथ अपनी बेटी की शादी करा दी। उन्मादिनी शादी के बाद खुशी से रहने लगी, लेकिन कभी-कभी उसके मन में यह बता जरूर आती थी कि राजा ने उसे बुरी औरत समझकर उसके साथ शादी करने से मना कर दिया था।
एक बार बसंत के मौसम में राजा बसंत का मेला देखने निकले। राजा की सैर की खबर उन्मादिनी को भी मिली, वो देखना चाहती थी कि वो कौन राजा था, जिसने उसके साथ शादी नहीं की। यह सोचकर उन्मादिनी अपने घर की छत पर राजा को देखने के लिए खड़ी हो गई। राजा अपनी पूरी सेना के साथ उधर से जा ही रहे थे कि उनकी नजर छत पर खड़ी उन्मादिनी पर पड़ी। उसे देखकर राजा पूरी तरह से आकर्षित हो गए। उन्होंने अपने सेवक से पूछा, “यह खूबसूरत लड़की कौन है?” तब सेवक ने राजा को सारी कहानी बताई, “यह वही लड़की है, जिसके साथ ब्राह्मणों के कहने पर आपने शादी करने से मना कर दिया था। बाद में इसकी शादी सेनापति बलधर के साथ हो गई थी।” पूरी बात सुनकर राजा को गुस्सा आया और उसने ब्राह्मणों को नगर छोड़ने की सजा दे दी।
उसके बाद राजा बार-बार यह बात सोच-सोचकर दुखी रहने लगा। उसे बार-बार शर्म भी आ रही थी कि वो एक ऐसी लड़की के बारे में सोच रहा था जो पहले से ही शादीशुदा है। राजा के हाव-भाव से आसपास के लोग उनकी मन की बात समझने लगे। राजा के मंत्री और चाहने वालों ने राजा से कहा, “राजा इसमें दुखी होने वाली क्या बात है, सेनापति तो आपके लिए ही काम करता है तो आप उनसे बात कर उसकी पत्नी को अपना लें।” राजा ने लेकिन मंत्रियों की बात नहीं मानी।
राजा का सेनापति बलधर, जिससे उन्मादिनी की शादी हुई थी, वो राजा का भक्त था। उसे जब राजा की बात पता चली तो वो राजा के पास पहुंच गया और बोला, “राजा, मैं आपका दास हूं और वो आपके दासी की ही पत्नी है। मैं खुद उसे आपको भेंट देता हूं। आप उसे अपना लें या फिर मैं उसे मंदिर में छोड़ देता हूं। वो देवकुल की स्त्री हो जाएगी तो आप उसे अपना सकते हैं।” राजा को सेनापति की बात सुनकर बहुत गुस्सा आया। राजा ने कहा, “राजा होकर मैं ही ऐसा बुरा काम करूंगा, कभी नहीं। तुम मेरे भक्त होकर मुझे ऐसा काम करने को कह रहे हो। अगर तुम अपनी पत्नी को नहीं अपनाओगे तो मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा।” राजा मन ही मन उन्मादिनी के बारे में सोचते-सोचते मर गया। सेनापति राजा की मौत से बहुत दुखी हुआ और इस बात को सह नहीं पाया। उसने अपने गुरु को सब बात बताई। उसके गुरु ने कहा, “सेनापति का धर्म होता है कि वो राजा के लिए अपनी जान दे दे।” यह बात सुनकर सेनापति ने राजा के लिए बनाई गई चिता में कूदकर अपनी जान दे दी। जब यह बात सेनापति की पत्नी उन्मादिनी को पता चली तो उसने भी अपने पति के लिए अपने प्राण त्याग दिए।
इतना बताने के बाद बेताल ने राजा विक्रमादित्य से सवाल पूछा, “बताओ राजन, राजा और सेनापति में सबसे ज्यादा हिम्मतवाला कौन था?”
विक्रमादित्य बोला, “राजा सबसे अधिक साहसी था, क्योंकि उसने राज धर्म निभाया। उसने सेनापति के कहने पर भी उन्मादिनी को नहीं अपनाया और खुद मर जाना सही समझा। सेनापति एक अच्छा सेवक था, अपने राजा के लिए उसने अपनी जान दे दी, इसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं थी। असली हिम्मत वाला तो राजा था, जिसने अपने धर्म और काम को अनदेखा नहीं किया।”
विक्रमादित्य का जवाब सुनकर बेताल खुश हुआ और हर बार की तरह पेड़ पर जाकर लटक गया।
कहानी से सीख :
असली हिम्मतवाला इंसान वही होता है, जो खुद से पहले अपने परिवार के बारे में सोचे और अपनों का ध्यान रखे।