Damodarastakam:दामोदर अष्टकम: श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का मधुर वर्णन
Damodarastakam:दामोदर अष्टकम भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का एक अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण स्तुति है। यह अष्टकम कार्तिक मास में विशेष रूप से गाया जाता है और इसे सत्यव्रत मुनि द्वारा रचित माना जाता है। इस स्तुति में भगवान श्रीकृष्ण के दामोदर रूप का अत्यंत मनोहारी वर्णन किया गया है, जब माता यशोदा ने उन्हें मक्खन चोरी करते हुए पकड़ा था और रस्सी से बांध दिया था।
Damodarastakam:दामोदर अष्टकम का महत्व
- कार्तिक मास का महत्व: कार्तिक मास भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित होता है और इस महीने में Damodarastakam दामोदर अष्टकम का पाठ करने का विशेष महत्व है।
- भावनाओं का प्रवाह: यह अष्टकम भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति की भावनाओं को प्रकट करता है।
- मन की शांति: इस स्तुति का पाठ करने से मन शांत होता है और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति बढ़ती है।
- आध्यात्मिक विकास: दामोदर अष्टकम का नियमित पाठ आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।
Damodarastakam:दामोदर अष्टकम के कुछ प्रमुख बिंदु
- बाल लीलाओं का वर्णन: इस स्तुति में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का अत्यंत मनोहारी वर्णन किया गया है, जैसे कि माता यशोदा द्वारा उन्हें मक्खन चोरी करते हुए पकड़ा जाना और रस्सी से बांध दिया जाना।
- भक्ति भाव: इस स्तुति में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अगाध भक्ति भाव व्यक्त किया गया है।
- काव्य सौंदर्य: इस स्तुति की भाषा अत्यंत सरल और सहज है, साथ ही इसमें काव्य सौंदर्य भी भरपूर है।
Damodarastakam:दामोदर अष्टकम का पाठ करने का तरीका
- शांत वातावरण: दामोदर अष्टकम का पाठ करने के लिए एक शांत और एकांत स्थान चुनें।
- शुद्ध मन: पाठ करते समय मन को शुद्ध रखें और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भाव जगाएं।
- तुलसी दल: आप तुलसी दल का प्रयोग भी कर सकते हैं।
- दीपक: आप दीपक जलाकर भी पाठ कर सकते हैं।
Damodarastakam:अंतिम शब्द
Damodarastakam:दामोदर अष्टकम एक अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण स्तुति है। इसका नियमित पाठ करने से मन शांत होता है और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति बढ़ती है। यदि आप भगवान श्रीकृष्ण के भक्त हैं, तो आपको दामोदर अष्टकम का पाठ अवश्य करना चाहिए।
दामोदर अष्टकम (Damodarastakam)
नमामीश्वरं सच्-चिद्-आनन्द-रूपं
लसत्-कुण्डलं गोकुले भ्राजमनम्
यशोदा-भियोलूखलाद् धावमानं
परामृष्टम् अत्यन्ततो द्रुत्य गोप्या ॥ १॥
रुदन्तं मुहुर् नेत्र-युग्मं मृजन्तम्
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्क-नेत्रम्
मुहुः श्वास-कम्प-त्रिरेखाङ्क-कण्ठ
स्थित-ग्रैवं दामोदरं भक्ति-बद्धम् ॥ २॥
इतीदृक् स्व-लीलाभिर् आनन्द-कुण्डे
स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्
तदीयेषित-ज्ञेषु भक्तैर् जितत्वं
पुनः प्रेमतस् तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ३॥
वरं देव मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चन्यं वृणे ‘हं वरेषाद् अपीह
इदं ते वपुर् नाथ गोपाल-बालं
सदा मे मनस्य् आविरास्तां किम् अन्यैः ॥ ४॥
इदं ते मुखाम्भोजम् अत्यन्त-नीलैर्
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश् च गोप्या
मुहुश् चुम्बितं बिम्ब-रक्ताधरं मे
मनस्य् आविरास्ताम् अलं लक्ष-लाभैः ॥ ५॥
नमो देव दामोदरानन्त विष्णो
प्रसीद प्रभो दुःख-जालाब्धि-मग्नम्
कृपा-दृष्टि-वृष्ट्याति-दीनं बतानु
गृहाणेष माम् अज्ञम् एध्य् अक्षि-दृश्यः ॥ ६॥
कुवेरात्मजौ बद्ध-मूर्त्यैव यद्वत्
त्वया मोचितौ भक्ति-भाजौ कृतौ च
तथा प्रेम-भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ
न मोक्षे ग्रहो मे ‘स्ति दामोदरेह ॥ ७॥
नमस् ते ‘स्तु दाम्ने स्फुरद्-दीप्ति-धाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै
नमो ‘नन्त-लीलाय देवाय तुभ्यम् ॥ ८॥
पवित्र कार्तिक मास में भक्तों द्वारा सबसे अधिक मनन किया जाने वाला मन्त्र। ISKCON के अनुयायी दामोदर अष्टकम का पाठ लगभग सभी प्रमुख उत्सवों पर भजते हैं।