वैसे तो पूरी दुनिया में अयोध्या को भगवान राम के कारण पहचाना जाता है लेकिन कोरिया के लोगों का अयोध्या से जुड़ाव का एक अन्य कारण और भी है। कोरिया के पौराणिक दस्तावेजों के अनुसार अयोध्या की एक राजकुमारी, कोरिया की महारानी बनी थी।
कोरिया के पौराणिक इतिहास में यह बात दर्ज है कि करीब दो हजार साल पहले अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना नी हु ह्वांग ओक, अयुता यानि अयोध्या से दक्षिण कोरिया के ग्योंगसांग प्रांत में स्थित किमहये शहर आ गई थी।
मंदारिन भाषा में लिखे कोरिया के पौराणिक दस्तावेज ‘साम गुक युसा’ में उल्लिखित कथा के अनुसार अयोध्या की राजकुमारी के पिता के स्वप्न में स्वयं ईश्वर प्रकट हुए और उन्होंने राजकुमारी के पिता से कहा कि वह अपने बेटे और राजकुमारी को विवाह के लिए किमहये शहर भेजें, जहां सुरीरत्ना का विवाह राजा सुरो के साथ संपन्न होगा।
16 वर्ष की उम्र में राजकुमारी सुरीरत्ना का विवाह किमहये राजवंश के राजकुमार सुरो के साथ संपन्न हुआ। किमहये राजवंश के नाम पर ही वर्तमान कोरिया का नामकरण हुआ है।
कोरिया के लोगों का मानना है कि सुरीरत्ना और राजा सुरो के वंशजों ने ही 7वीं शताब्दी में कोरिया के विभिन्न राजघरानों की स्थापना की थी। इनके वंशजों को कारक वंश का नाम दिया गया है जो कि कोरिया समेत विश्व के अलग-अलग देशों में उच्च पदों पर आसीन हैं। कोरिया के एक पूर्व राष्ट्रपति भी इसी वंश से संबंध रखते थे।
यूं तो कोरिया के इतिहास में अनेक महारानियों का नाम दर्ज हैं, लेकिन सभी में से सुरीरत्ना को ही सबसे अधिक आदरणीय और पवित्र माना गया, जिसका कारण ये था कि उनकी जड़ें भगवान राम की नगरी अयोध्या से जुड़ी हुई थीं।
कोरिया के पौराणिक दस्तावेज ‘साम कुक युसा’ में राजा सुरो और सुरीरत्ना के विवाह की कहानी भी दर्ज है, जिसके अनुसार प्राचीन कोरिया में कारक वंश को स्थापित करने वाले राजा सुरो की पत्नी रनी हौ (यानि सुरीरत्ना) मूल रूप से आयुत (अयोध्या) की राजकुमारी थी। सुरो से विवाह करने के लिए उनके पिता ने उन्हें समुद्र के रास्ते से दक्षिण कोरिया स्थित कारक राज्य भेजा था।आज की तारीख में कोरिया में कारक गोत्र के तकरीबन 60 लाख लोग स्वयं को राजा सुरो और अयोध्या की राजकुमारी का वंशज बताते हैं। सुरो और सुरीरत्ना की दास्तां पर यकीन करने वाले लोगों की आबादी दक्षिण कोरिया की कुल आबादी का दसवां भाग है।कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति किम देई जुंग और पूर्व प्रधानमंत्री हियो जियोंग और जोंग पिल किम कारक वंश से ही संबंध रखते थे। कारक वंश के लोगों ने उस पत्थर को भी सहेज कर रखा है जिसके विषय में यह कहा जाता है कि अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना अपनी समुद्र यात्रा के दौरान नाव का संतुलन बनाए रखने के लिए उसे रखकर लाई थी। किमहये शहर में राजकुमारी हौ की प्रतिमा भी है।कोरिया में रहने वाले कारक वंश के लोगों का एक समूह हर साल फरवरी-मार्च के दौरान राजकुमारी सुरीरत्ना की मातृभूमि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने अयोध्या आता है।हालांकि भारतीय प्राचीन दस्तावेजों में कहीं भी यह जिक्र नहीं मिलता कि सुरीरत्ना का विवाह कोरिया के राजा के साथ हुआ था हालांकि उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग के एक ब्रोशर में कोरिया की रानी का जिक्र है। भारतीय दस्तावेजों में भी इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं हैं कि राजकुमारी सुरीरत्ना का संबंध भगवान राम के वंश से था। संबंधित कथाओं के अनुसार सुरीरत्ना या हौ का निधन 57 वर्ष की उम्र में हुआ था