
इस मंदिर को भोजेश्वर मंदिर या भोजपुर मंदिर के नाम से जाना जाता है।
Bhojeshwar Temple:महादेव का यह मंदिर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 30 किलोमीटर दूर भोजपुर में एक पहाड़ी पर स्थित है। इसे भोजेश्वर मंदिर या भोजपुर मंदिर के नाम से जाना जाता है। विशालकाय शिवलिंग व अधूरे मंदिर निर्माण के कारण यह देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है। जिस चबूतरे पर शिवलिंग टिका है, वहां तक पहुंचने के लिए पुजारी को सीढ़ी लगानी पड़ती है।
मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यह अधूरा है, यानी मंदिर का निर्माण आजतक पूरा नहीं हो सका। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग की छत तक अधूरी है, जोकि 4 विशालकाय स्तंभों पर टिकी है। कहा जाता है कि अगर भोजेश्वर मंदिर का निर्माण पूरा हो जाता तो यह उस समय का पूरे विश्व में सबसे बड़ा मंदिर होता। रहस्यों व अनसुलझी पहेलियों से घिरे इस मंदिर में दर्शन के लिए सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है।
मंदिर का इतिहास
भोजेश्वर मंदिर के निर्माण की कहानी काफी दिलचस्प है। मंदिर बनवाने का श्रेय 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोजदेव को दिया जाता है। कहा जाता है कि एक बार राजा भोज बहुत बीमार पड़ गए, उन्हें सलाह दी गई कि 9 नदियों व 19 तालाबों का पानी पीकर वो ठीक हो जाएंगे। राजा भोज ने बेतवा नदी पर एक बांध बनवाया, जिसने बहुत सी छोटी नदियों व तालाबों को जोड़ दिया।
इसी बांध का पानी पीकर राजाभोज ठीक हो गए, तभी उन्होंने फैसला किया कि वह दुनिया का सबसे बड़ा व भव्य मंदिर बनवाएंगे, लेकिन किसी कारण मंदिर निर्माण पूरा न हो सका। कहा जाता है कि मंदिर को एक ही दिन में बनवाने का फैसला किया गया था। सूर्योदय होते ही मंदिर निर्माण को रोक दिया गया। हालांकि, पुरातत्व विभाग की तरफ से ऐसी किसी भी घटना की पुष्टि नहीं की गई है। भोजेश्वर मंदिर निर्माण की एक और कहानी है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया।
अज्ञातवास के दौरान पांडव कुछ दिनों के लिए भोपाल के पास भीमबेटका में भी रुके थे। उसी दौरान भीम ने बेतवा नदी के पास विशालकाय शिवलिंग स्थापित कर भगवान शिव के मंदिर का निर्माण किया। ताकि माता कुंती नदी में स्नान करने के बाद मंदिर में भगवान शिव की उपासना कर सकें। यही मंदिर राजा भोज के समय विकसित होकर भोजेश्वर मंदिर बन गया।
मंदिर का महत्व
पांडवों की माता कुंती इस मंदिर में अराधना करती थीं। भोजेश्वर मंदिर में स्थापित विश्व के सबसे बड़े व प्राचीन शिवलिंग में से एक होने के कारण इसे उत्तर भारत का सोमनाथ भी जाता है। किसी संकल्प की वजह से इस मंदिर का निर्माण कार्य अधूरा रह गया, जिसे एक ही दिन में पूरा करना था। मंदिर के आसपास मौजूद मूर्तियां व पिलर इस बात की गवाही देते हैं। विशालकाय शिवलिंग होने के कारण भक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक नहीं कर पाते। शिवलिंग का अभिषेक व पूजन इसकी जलहरी पर चढ़कर ही किया जाता है।
मंदिर की वास्तुकला
पहाड़ी पर 17 फुट ऊंचे एक चबूतरे पर भोजेश्वर मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर 106 फुट लंबा व 77 फुट चौड़ा है। सबसे विशेष है गर्भगृह में स्थापित विशाल शिवलिंग, यह आधार सहित 22 फुट ऊंचा है। इसका व्यास 7.5 फुट है। शिवलिंग को बनाने में एक ही पत्थर का प्रयोग किया गया है जोकि चिकने बलुआ पत्थर से बना है। गर्भगृह की अधूरी छत 40 फुट ऊंचे 4 विशाल स्तंभों पर टिकी है।
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इन स्तंभों पर शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम व ब्रह्मा-सावित्री की प्रतिमाएं उकेरी गई हैं। मंदिर का दरवाजा देश में किसी हिंदू इमारत के दरवाजों में सबसे बड़ा है। मंदिर परिसर में ही भक्तांबर स्त्रोत लिखने वाले आचार्य माटूंगा का समाधि स्थल भी है। भोजेश्वर मंदिर की वास्तुकला में गौर करने वाली बात यह है कि मंदिर की छत गुंबद आकार की है। जोकि प्रमाणित करती है कि भारत में गुंबद का निर्माण इस्लाम आने से पहले से किया जा रहा है। इतिहासकार इसे भारत की सबसे पहली गुंबदीय छत वाली इमारत मानते हैं। मंदिर के पीछे एक ढलान है। माना जाता है कि इसी ढलान का प्रयोग कर भारी पत्थरों को पहाड़ पर मंदिर निर्माण के लिए लाया गया होगा।
मंदिर का समय
मंदिर खुलने का समय
06:00 AM – 07:00 AM
मंदिर का प्रसाद
महादेव के भोजेश्वर मंदिर में जल, दूध, घी, शहद, दही अर्पित किया जाता है। विशेष अवसरों पर भक्त बेलपत्र, फूल, नारियल व अन्य पूजन सामग्री भी चढ़ाते हैं।