दुर्गा सप्तशती का द्वितीय अध्याय, जिसे “मध्यम चरित्र” के नाम से भी जाना जाता है, महिषासुर वध की कथा को प्रस्तुत करता है। यह अध्याय देवी दुर्गा के महाशक्ति रूप को दर्शाता है, जिसमें वे असुरों के राजा महिषासुर का वध करती हैं। इसमें यह बताया गया है कि जब भी संसार पर अत्याचार और अधर्म का अतिक्रमण होता है, तब देवी दुर्गा अपने प्रचंड रूप में अवतरित होकर उसका विनाश करती हैं।

महिषासुर

दुर्गा सप्तशती द्वितीय अध्याय का विस्तृत सार

द्वितीय अध्याय: महिषासुर का अत्याचार और देवताओं की प्रार्थना

कथा का प्रारंभ (The Beginning of the Chapter):

असुरों के राजा महिषासुर ने देवताओं पर आक्रमण कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। महिषासुर अत्यधिक बलशाली था और वह विभिन्न रूपों (महिष, मनुष्य, हाथी, भैंसा आदि) में परिवर्तित होने की शक्ति रखता था। उसने स्वर्ग से देवताओं को निकालकर इंद्रासन पर अपना अधिकार जमा लिया।

देवताओं की दुर्दशा (Plight of the Gods):

स्वर्ग से निकाले गए देवता अत्यंत दुखी हो गए और सभी मिलकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के पास गए। देवताओं ने उन्हें अपनी दुर्दशा बताते हुए के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना सुनकर ब्रह्मा, विष्णु, और महेश सभी ने अपनी शक्तियों को एकत्रित किया, और उनके क्रोध से एक प्रचंड ज्योति उत्पन्न हुई, जिसने एक महाशक्ति का रूप धारण किया।

देवी दुर्गा का अवतार (The Creation of Durga Devi):

सभी देवताओं की शक्ति से एक दिव्य रूप का निर्माण हुआ। यह रूप था महाशक्ति मां दुर्गा का। प्रत्येक देवता ने अपनी शक्तियां और अस्त्र-शस्त्र देवी को प्रदान किए। उदाहरण के लिए, भगवान विष्णु ने उन्हें चक्र, भगवान शिव ने त्रिशूल, इंद्र ने वज्र, वरुण ने शंख, और अग्नि ने शक्ति प्रदान की।

देवास्तुष्टुवुः प्रयता वै स्वयम्भुवं मारीचं चारुदेवेशं लोककर्ता मरेश्वरम्।।

अर्थ: तब सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश की स्तुति करने लगे और उनसे प्रार्थना की कि वे उनकी रक्षा करें।

महिषासुर का देवी से युद्ध (Battle between Durga and Mahishasura):

जब महिषासुर ने देवी दुर्गा को देखा, तो उसने उन्हें चुनौती दी। देवी ने से युद्ध करना शुरू किया, जो बहुत भयंकर था। महिषासुर बार-बार अपने रूप बदलता रहा—कभी भैंसा, कभी हाथी, कभी सिंह। देवी ने अद्भुत पराक्रम दिखाया और असुरों की सेना को विनाश कर दिया। अंततः देवी ने त्रिशूल से महिषासुर का वध किया।

श्लोक (Slokas from the Second Chapter):

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि। महिषासुरं वदेत्याहं पुनः शत्रून् जहि॥

अर्थ: “हे देवी, हमें रूप, विजय, यश और शत्रुओं का नाश प्रदान करें। महिषासुर का वध करके आप पुनः शत्रुओं का संहार करें।”

महिषासुर का वध (Mahishasura’s Killing by Goddess Durga):

महिषासुर ने भैंसे का रूप धारण किया और देवी पर आक्रमण किया। देवी ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से को गम्भीर रूप से घायल कर दिया। महिषासुर अंततः अपने भैंसे के रूप से मनुष्य रूप में आ गया, और देवी ने उसके सिर को काटकर उसका वध किया।

स चोद्धूतविचित्रासिः शूलहस्ताद्दुरासदः। जगानासुरराजानं महिषं तस्य सन्निधौ॥

अर्थ: “देवी ने अपने त्रिशूल से असुरराज महिषासुर को युद्धभूमि में ही मार गिराया।”

देवताओं द्वारा देवी की स्तुति (Praise by the Gods):

महिषासुर के वध के बाद, देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी की स्तुति की। उन्होंने कहा कि जब भी संसार पर संकट आता है, तब-तब देवी दुर्गा अपने रूप में प्रकट होकर सभी का उद्धार करती हैं।

देवताओं की स्तुति (Devatas’ Stuti):

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ: “हे सर्वमंगल रूपिणी, शिव स्वरूपिणी, जो सभी कार्यों की सिद्धि करने वाली हैं, आपको बारंबार प्रणाम। आप ही शरण देने वाली देवी हैं।”

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (Mahishasura Mardini Stotra):

इस अध्याय में देवी की शक्ति का वर्णन करते हुए महिषासुर मर्दिनी की स्तुति की जाती है। इसे नवरात्रि में विशेष रूप से जपते हैं, ताकि देवी की कृपा से सभी संकटों का नाश हो सके।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

अर्थ: वह देवी जो सभी प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उन्हें बार-बार प्रणाम है।

द्वितीय अध्याय के प्रमुख बिंदु (Key Takeaways from Second Chapter):

  1. महिषासुर का अत्याचार: महिषासुर ने देवताओं पर आक्रमण कर स्वर्ग को अपने अधिकार में ले लिया था।
  2. देवताओं की प्रार्थना: देवताओं ने त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु, और महेश से के विनाश के लिए प्रार्थना की।
  3. देवी दुर्गा का अवतरण: त्रिदेव की शक्तियों से देवी दुर्गा का अवतरण हुआ, जिन्हें सभी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए।
  4. महिषासुर का वध: देवी दुर्गा ने अपने त्रिशूल से वध किया और देवताओं को उनका स्वर्गलोक वापस दिलाया।
  5. देवताओं द्वारा स्तुति: देवी दुर्गा की महिमा का गुणगान करते हुए, देवताओं ने उनका आभार व्यक्त किया और स्तुति की।

द्वितीय अध्याय के महत्व (Importance of the Second Chapter):

  1. दुष्टों का संहार: यह अध्याय यह सिखाता है कि जब भी संसार में अत्याचार और अधर्म बढ़ता है, तब देवी दुर्गा अपने रौद्र रूप में अवतरित होकर उसका विनाश करती हैं।
  2. शक्ति का प्रतीक: देवी दुर्गा को शक्ति का अवतार माना जाता है। इस अध्याय में देवी का युद्ध कौशल और का वध उनकी अपार शक्ति का प्रतीक है।
  3. नवरात्रि में पाठ: नवरात्रि के दौरान इस अध्याय का पाठ विशेष रूप से किया जाता है, क्योंकि यह असुरों के नाश और धर्म की विजय का प्रतीक है।

मुख्य मंत्र (Main Mantra):

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

यह महामंत्र देवी दुर्गा की शक्ति का आह्वान करता है और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है। इसे विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान जपा जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion):

दुर्गा सप्तशती द्वितीय अध्याय में देवी दुर्गा का महिषासुर का वध और देवताओं को उनके अधिकार दिलाने की महाकथा वर्णित है। यह अध्याय देवी की शक्ति, उनकी करुणा और उनके प्रचंड रूप को दर्शाता है। इसके पाठ से मनुष्य के जीवन में शक्ति, धैर्य और साहस का संचार होता है।

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